मानव अधिकारों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
मानव अधिकारों का विचार नई बात नहीं है। वे अनादिकाल से हमारे समाज का हिस्सा रहे हैं, चाहे वह प्रारंभिक समाजों में न लिखे हुए कानूनों के माध्यम से हो या...
मानव अधिकारों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
प्रारंभिक समाजों में मानव अधिकार
जब हम मानव अधिकारों की बात करते हैं, तो यह समझना आवश्यक है कि इनकी जड़ें कितनी गहरी और इतिहास में कितनी दूर तक हैं। प्रारंभिक समाजों में भी कुछ न कुछ अधिकार और कर्तव्य होते थे, चाहे वह लिखित रूप में न हों। इसका मतलब यह है कि अधिकारों का विचार मानव सभ्यता जितना पुराना है।
प्राचीन सभ्यताओं का योगदान
प्राचीन सभ्यताएं जैसे कि मेसोपोटामिया, मिस्र, और हड़प्पा संस्कृति, मानव अधिकारों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण रही हैं। इनमें से कई सभ्यताओं की धार्मिक और सामाजिक प्रणालियाँ नैतिकता और न्याय पर आधारित थीं। प्राचीन मिस्र में भी इंसानी अधिकारों का कुछ सम्मान था, जहाँ फिरौन भी न्याय के देवता मायत के अधीन थे।
यूनानी और रोमन दृष्टिकोण
यूनानी और रोमन सभ्यता ने मानव अधिकारों और नागरिक संगठन के प्रति गहरा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। रोमन साम्राज्य में 'रोमन विधि' का विकास हुआ, जिसने नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया। इसके बाद, यूनानी दर्शनशास्त्रियों ने प्राकृतिक अधिकारों और सामाजिक अनुबंध की अवधारणाओं का विस्तार किया।
आधुनिक युग: मानव अधिकारों की औपचारिक मान्यता
मानव अधिकारों की औपचारिक मान्यता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ 17वीं और 18वीं शताब्दी में आया। अमेरिकन स्वतंत्रता संग्राम और फ्रेंच क्रांति जैसे आंदोलनों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया। 1948 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा